* Rameshwar Jyotirlinga*

* Rameshwar Jyotirlinga*

*रामेश्वर ज्योतिर्लिंग*

There is a legend about Rameswaram Jyotirling. That when Lord Ram Mata Sita was going to Ayodhya after being rescued from the captivity of Ravana, at that time, he had rested on the way to Gandhamadan mountain. After resting, he came to know that the sin of destroying the sage Pulastya Kul is felt here. In order to avoid this curse, he should worship Lord Shiva's Jyotirlinga at this place and worship him.

 After learning this, Lord Shriram requested Hanuman that he should go to Kailash Mountain and bring Shivaling. After getting the order of Lord Rama, Hanuman went to Kailash Mountain, but he could not see Lord Shiva there. On this he chanted Lord Shiva carefully. After that Lord Shiva was pleased and presented him. And completed the purpose of Hanuman ji.

 Here Hanuman ji was delayed due to doing penance and pleased Lord Shiva. And wait for an auspicious time to establish Lord Rama and Goddess Sita Shivaling. Due to fear of leaving the auspicious time, the Goddess established himself by establishing the sex of the sand.

 After few minutes of the establishment of Shivalinga, Hanuman ji came with Shankar ji and he was both sad and surprised. Hanuman ji started to insist that Shivaling brought by him should be established. On this Lord Rama said that before you remove the shivaling of the already established sand, before that the shiveling brought by you will be established.

 Hanuman ji tried to remove Shivalinga from his entire strength, but he failed. In the place of sand of Shivalinga being shaken from his place, Hanuman jumped. Seeing this situation of Hanuman ji, mother Sita started crying. And Lord Ram explained to Hanuman ji that due to the sin you did to remove Shivalinga from his place, he suffered from this physical pain.

 Hanuman ji apologized to Lord Rama for his mistake and the Shivling that Hanuman ji came from from Kailash Mountain. He was also established nearby. The name of this gender was named Lord Ram by Hanumdishwar. Both of these Shivlingas are praised by Lord Shri Ram himself through many scriptures. "



*रामेश्वर ज्योतिर्लिंग*
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के विषय में पौराणिक कथा है. कि जब भगवान श्री राम माता सीता को रावण की कैद से छुडाकर अयोध्या जा रहे थे़ उस समय उन्होने मार्ग में गन्धमदान पर्वत पर रुक कर विश्राम किया था. विश्राम करने के बाद उन्हें ज्ञात हुआ कि यहां पर ऋषि पुलस्त्य कुल का नाश करने का पाप लगा हुआ है. इस श्राप से बचने के लिए उन्हें इस स्थान पर भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित कर पूजन करना चाहिए.

 यह जानने के बाद भगवान श्रीराम ने हनुमान से अनुरोध किया कि वे कैलाश पर्वत पर जाकर शिवलिंग लेकर आयें. भगवान राम के आदेश पाकर हनुमान कैलाश पर्वत पर गए, परन्तु उन्हें वहां भगवान शिव के दर्शन नहीं हो पाए. इस पर उन्होने भगवान शिव का ध्यानपूर्वक जाप किया. जिसके बाद भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हे दर्शन दिए. और हनुमान जी का उद्देश्य पूरा किया.

 इधर हनुमान जी को तप करने और भगवान शिव को प्रसन्न करने के कारण देरी हो गई. और उधर भगवान राम और देवी सीता शिवलिंग की स्थापना का शुभ मुहूर्त लिए प्रतिक्षा करते रहें. शुभ मुहूर्त निकल जाने के डर से देवी जानकीने विधिपूर्वक बालू का ही लिंग बनाकर उसकी स्थापना कर दी.

 शिवलिंग की स्थापना होने के कुछ पलों के बाद हनुमान जी शंकर जी से लिंग लेकर पहुंचे तो उन्हें दुख और आश्चर्य दोनों हुआ. हनुमान जी जिद करने लगे की उनके द्वारा लाए गये शिवलिंग को ही स्थापित किया जाएं. इसपर भगवान राम ने कहा की तुम पहले से स्थापित बालू का शिवलिंग पहले हटा दो, इसके बाद तुम्हारे द्वारा लाये गये शिवलिंग को स्थापित कर दिया जायेगा.

 हनुमान जी ने अपने पूरे सामर्थ्य से शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया, परन्तु वे असफल रहें. बालू का शिवलिंग अपने स्थान से हिलने के स्थान पर, हनुमान जी ही लहूलुहान हो गए़. हनुमान जी की यह स्थिति देख कर माता सीता रोने लगी. और हनुमान जी को भगवान राम ने समझाया की शिवलिंग को उसके स्थान से हटाने का जो पाप तुमने किया उसी के कारण उन्हें यह शारीरिक कष्ट झेलना पडा.

 अपनी गलती के लिए हनुमान जी ने भगवान राम से क्षमा मांगी और जिस शिवलिंग को हनुमान जी कैलाश पर्वत से लेकर आये थे. उसे भी समीप ही स्थापित कर दिया गया. इस लिंग का नाम भगवान राम ने हनुमदीश्वर रखा. इन दोनो शिवलिंगों की प्रशंसा भगवान श्री राम ने स्वयं अनेक शास्त्रों के माध्यम से की है."



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